गौतम बुद्ध के बारे में जाने सम्पूर्ण जानकारी
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्यो के गणराजा थे उनकी माता महामाया देवी जो कोशल राज्य की राजकुमारी थी।
गौतम गोत्र में पैदा होने के कारण गौतमी कहा जाता है इनके जन्म के एक सप्ताह में माता की मृत्यु हो गई।
बालक का पालन पोषण उनकी मौसी महाप्रजापती गौतमी ने किया तथा बालक का नाम सिद्धार्थ रखा ये ज्ञान प्राप्त करने के बाद बुद्ध कहलाये।
बौद्ध धर्म के वास्तविक संस्थापक महात्मा बुद्ध
जन्म 566 ई.पू. ( प्राचीन भारत ,NCRT जून 2003 ) जन्मस्थल लुम्बिनी वन (कपिलवस्तु _वर्तमान लुम्मदेई, नेपाल ) पिता शुध्दोधन (शाक्यो के राज्य कपिलवस्तु के शासक ) माता महामाया देवी बचपन का नाम
सिद्धार्थ ( गोत्र - गोतम ) पालन -पोषण गौतमी विमाता प्रजापति विवाह 16 वर्ष की अवस्था में यशोधरा -कोलिय गणराज्य की राजकुमारी पुत्र राहुल गृहत्याग की घटना महाभिनिष्क्रमण सारथी चन्ना
घोड़ा कंथक ध्यान गुरु आलार कालाम ज्ञान प्राप्ति 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध कहलाए। ज्ञान प्राप्ति स्थल गया ( बोध गया , बिहार ) निरंजना नदी का तट ( घटना - सम्बोधी ) महाबोधि मन्दिर वट वृक्ष इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति
प्रथम उपदेश स्थल ऋषि पत्तन ( सारनाथ ) आचरण की शुद्धता पाली भाषा स्थान वाली - पांच ब्राह्मण (पंचवर्गीय ) घटना - धर्मचक्र परिवर्तन धर्म प्रचार का स्थल अंग,मगध ,काशी ,मल्ल ,शाक्य ,वज्जि,कोशल राज्य
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गौतम बुद्ध के बारे में जाने सम्पूर्ण जानकारी |
जीवन का अंत 486 ई.पू. (प्राचीन भारत NCRT जून 2003 आयु -80 वर्ष ,दिन -वैशाख पूर्णिमा ,स्थल -कुशीनगर ( उत्तर प्रदेश) कसया गाव -महापरिनिर्वाण (मृत्यु के बाद ) विशेष बुद्ध का जन्म ,ज्ञान प्राप्ति व महापरिनिर्वाण तीनो वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध
पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
नोट 18 मई , 1974 को राजस्थान के पोखरण में भारत का प्रथम सफल परमाणु परीक्षण बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्धा स्माइलिंग मिशन के अंतर्गत किया गया था। बुद्ध के सर्वाधिक उपदेश कोसल की राजधानी श्रावस्ती में दिये गये थे।
बुद्ध के जीवन की घटनाए
घटना | प्रतीक |
गर्भ | हाथी |
यौवन | साड |
गृह त्याग (महाभिनिष्क्रमण) | घोड़ा |
ज्ञान प्राप्ति(सम्बोधि ) | बोधिवृक्ष (पीपल) |
समृद्धि | शेर |
प्रथम प्रवचन (धर्म चक्र प्रवर्तन) | चक्र |
निर्वाण | पद्चिन्ह |
मृत्यु (महापरिनिवार्ण) | स्तूप |
जन्म | कमल |
स्तूप क्या है
महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी अस्थियो को 8 भागो में बाटा गया तथा उन पर समाधियों का निर्माण किया गया। सामान्यतः इन्ही को स्तूप कहा जाता है।
स्तूप के निर्माण की प्रथा बुद्ध काल के पूर्व की है। स्तूप का शाब्दिक अर्थ किसी वस्तु का ढेर होता है।चुकि यह चिता के स्थान पर बनाया जाता था , अतः इसका एक नाम चैत्य भी हो गया।
स्तूप का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में प्राप्त होता है जहाँ अग्नि की उठती हुई ज्वालाओ को स्तूप कहा गया है बुद्ध के पहले ही स्तूप का सम्बन्ध महापुरुष के साथ जुड़ गया था।
मौलिक रूप से स्तूप का सम्बन्ध मृतक संस्कार से था। शव-दाह के बाद बची हुई अस्थियो को किसी पात्र में रखकर मिटटी से ढक देने की प्रथा से स्तूप का जन्म हुआ। कालांतर में बौद्धों ने इसे अपनी संघ - पद्धति में अपना लिया।
इन स्तूपों में बुद्ध अथवा उनके प्रमुख शिष्यों की धातु रखी जाती थी अतः वे बौद्धों की श्रद्धा व उपासना के प्रमुख केन्द्र बन गये।
4 प्रकार के स्तूप
- शारीरिक इनमे बुद्ध तथा उनके शरीर के विविध अंग (दन्त ,नख ,केश आदि ) रखे जाते थे
- पारिभौगिक इनमे बुद्ध द्वारा उपयोग में लाई गयी वस्तुये ( भिक्षा पात्र ,चरण-पादुका ,आसन आदि रखी जाती थी।
- उद्देसिक इनमे वे स्तूप आते थे जिन्हे महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाओ से सम्बंधित अथवा उनकी यात्रा से पवित्र हुए स्थानों पर स्मृति रूप में निर्मित किया जाता था। ऐसे स्थान बोधगया ,लुम्बनी ,सारनाथ , कुशीनगर है।
- संकल्पित ये छोटे आकार के होते थे और इन्हे बौद्ध तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं द्वारा स्थापित किया जाता था। बौद्ध धर्म में इसे पुण्य का काम बताया गया है।
बुद्ध के जीवन से सम्बन्ध स्थल
लुम्बनी
यह स्थल गोरखपुर जिले के नौगढ़ रेलवे स्टेशन से 35 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। महारानी महामाया ने शाल वृक्षों के निचे राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम) को जन्म दिया था। अशोक के रुम्मिनदेई अभिलेख यहाँ से प्राप्त हुआ इसमें भी लुम्बिनी नाम का उल्लेख मिलता है।
कपिलवस्तु
उत्तरप्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले मे स्थित पिपरहवा नामक स्थल से कपिलवस्तु की पहचान की गई। कपिल का शाब्दिक अर्थ कपिल का स्थल है। कपिलवस्तु शाक्य गणराज्य की राजधानी थी , जहां के शासक गौतम बुद्ध के पिता शुद्धोधन थे।
यह नगर कपिलमुनि कुटी के स्थल पर बसा हुआ था। राप्ती की सहायक रोहणी नदी के तट पर अवस्थित था। धर्मचक्र प्रवर्तन उपरांत गौतम बुद्ध ने यहाँ की यात्रा की थी। अपने पिता , माता ,पुत्र व भाई देवदत्त को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था
श्रावस्ती
कोसल महाजनपद की राजधानी थी यह उत्तरप्रदेश में गोरखपुर से 195 किलोमीटर दूर पर अवस्थित है। वर्तमान में यह गोंडा जिले के सहेत-महेत गाँव के नाम से जाना जाता है। बुद्ध व उनके अनुयायी वर्षाकाल में श्रावस्ती में ही व्यतीत करते थे।
उन्होंने अपने जीवन के 25 वर्षाकाल यही पर व्यतीत किये थे। प्रसिद्ध जेतवन विहार श्रावस्ती में ही था जो समस्त बौद्ध धर्म के अनुयायियो को आकर्षित करता था।
भगवान बुद्ध ने यहाँ पर त्रिपिटकों की व्याख्या की और अपने 6 विरोधियो को बौद्ध धर्म की दीक्षा भी दी थी। जैनधर्म के तीसरे तीर्थकर स्वयंभूनाथ का जन्म श्रावस्ती में ही हुआ था।
सारनाथ
काशी महाजनपद का प्रमुख बौद्ध स्थल है जिसका अर्थ आध्यात्मिक प्रकाश की नगरी है। यह वाराणसी से 10 किलोमीटर की दुरी पर अवस्थित है। गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम धर्मोपदेश 5 ब्राह्मण शिष्यों को दिया था जो धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।
मौर्य शासक अशोक ने यहाँ पर प्रस्तर स्तम्भ का निर्माण कराया। स्तम्भ के शीर्ष पर स्थापित चतुर्मुखी सिंह था। 15 अगस्त, 1947 को देश स्वन्त्र होने पर स्तंभशीर्ष को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में चुना गया।
बोधगया
मगध साम्राज्य के अंतर्गत वर्तमान बिहार में फाल्गु नदी के तट पर स्थित एक बौद्ध स्थल है। गौतम बुद्ध ( शाक्यमुनि ) बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त ( निर्वाण ) किये थे।
यहाँ का महाबोधि मंदिर भगवान बुद्ध के विभिन्न अवस्थाओं में ज्ञान प्राप्ति की प्रतिमाएं प्राप्त होती है। मौर्य शासक अशोक ने यहाँ पर बौद्धस्तूप का निर्माण करवाया है।
कुशीनगर
इसकी पहचान आधुनिक कसिया /कसया के नाम से की गई है जो वर्तमान उत्तरप्रदेश के देवरिया जिला मे है। यहां पर गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किये थे।
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